भारतीय नागरिकता ख़त्म कैसे हो सकती है?

विधेयक का शुरुआती परिचय पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की वेबसाइट पर उपलब्ध है. पीडीएफ़ के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.
नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर विधेयक को लेकर विवाद क्यों है?
विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह विधेयक मुसलमानों के ख़िलाफ़ है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है.
बिल का विरोध यह कहकर किया जा रहा है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव कैसे कर सकता है?
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी इस विधेयक का ज़ोर-शोर से विरोध हो रहा है क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के बेहद क़रीब हैं.
इन राज्यों में इसका विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में आकर बसे हैं.
आरोप ये भी है कि मौजूदा सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्
नागरिकता अधिनियम, 1955 भारतीय नागरिकता से जुड़ा एक विस्तृत क़ानून है. इसमें बताया गया है कि किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कैसे दी जा सकती है और भारतीय नागरिक होने के लिए ज़रूरी शर्तें क्या हैं.
ष में करने की कोशिश में प्रवासी हिंदुओं के लिए भारत की नागरिकता लेकर यहां बसना आसान बनाना चाहती है.
ये भी आरोप है कि सरकार इस विधेयक के बहाने एनआरसी लिस्ट से बाहर हुए अवैध हिंदुओं को वापस भारतीय नागरिकता पाने में मदद करना चाहती है.
नहीं, यह विधेयक अभी राज्यसभा में पारित नहीं हुआ है.
मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में पेश हुए बिल में कहा गया था कि पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आए हुए हिंदू, सिख, पारसी, जैन और दूसरे धर्मावलंबियों को कुछ शर्तें पूरी करने पर भारत की नागरिकता दे दी जाएगी लेकिन 2016 नागरिकता संशोधन बिल में मुसलमानों का ज़िक्र नहीं था.
यह विधेयक लोकसभा में तो पारित हो गया था लेकिन राज्य सभा में लटक गया. इसके बाद चुनाव आ गए.
चूंकि एक ही सरकार के कार्यकाल में के दौरान ये विधेयक दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति की मंज़ूरी के लिए नहीं पहुंच पाया इसलिए बिल निष्प्रभावी हो गया और अब इसे दोबारा से लाया जा रहा है.
एनआरसी यानी नेशनल सिटिज़न रजिस्टर. इसे आसान भाषा में भारतीय नागरिकों की एक लिस्ट समझा जा सकता है. एनआरसी से पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं. जिसका नाम इस लिस्ट में नहीं, उसे अवैध निवासी माना जाता है.
असम भारत का पहला राज्य है जहां वर्ष 1951 के बाद एनआरसी लिस्ट अपडेट की गई. असम में नेशनल सिटिजन रजिस्टर सबसे पहले 1951 में तैयार कराया गया था और ये वहां अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की कथित घुसपैठ की वजह से हुए जनांदोलनों का नतीजा था.
इस जन आंदोलन के बाद असम समझौते पर दस्तख़त हुए थे और साल 1986 में सिटिज़नशिप एक्ट में संशोधन कर उसमें असम के लिए विशेष प्रावधान बनया गया.
इसके बाद साल 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में असम सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन यानी आसू के साथ-साथ केंद्र ने भी हिस्सा लिया था.
इस बैठक में तय हुआ कि असम में एनआरसी को अपडेट किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट पहली बार इस प्रक्रिया में 2009 में शामिल हुआ और 2014 में असम सरकार को एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया. इस तरह 2015 से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह पूरी प्रक्रिया एक बार फिर शुरू हुई.
31 अगस्त 2019 को एनआरसी की आख़िरी लिस्ट जारी की गई और 19,06,657 लोग इस लिस्ट से बाहर हो गए.

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